Chapter 3 अतीत में दबे पाँव
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1.
सिंधु सभ्यता साधन-संपन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था, कैसे?
उत्तर:
सिंधु-सभ्यता के शहर मुअनजो-दड़ो की व्यवस्था, साधन और नियोजन के विषय में खूब चर्चा हुई है। इस बात से सभी प्रभावित हैं कि वहाँ की अन्न-भंडारण व्यवस्था, जल-निकासी की व्यवस्था अत्यंत विकसित और परिपक्व थी। हर निर्माण बड़ी बुद्धमानी के साथ किया गया था; यह सोचकर कि यदि सिंधु का जल बस्ती तक फैल भी जाए तो कम-से-कम नुकसान हो। इन सारी व्यवस्थाओं के बीच इस सभ्यता की संपन्नता की बात बहुत ही कम हुई है। वस्तुत: इनमें भव्यता का आडंबर है ही नहीं। व्यापारिक व्यवस्थाओं की जानकारी मिलती है, मगर सब कुछ आवश्यकताओं से ही जुड़ा हुआ है, भव्यता का प्रदर्शन कहीं नहीं मिलता। संभवत: वहाँ की लिपि पढ़ ली जाने के बाद इस विषय में अधिक जानकारी मिले।
प्रश्न 2.
‘सिंधु-सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।’ ऐसा क्यों कहा गया?
उत्तर:
सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की। मूर्तियाँ, मृद्-भांडे, उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पति और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से ज्यादा कला-सिद्ध जाहिर करता है। खुदाई के दौरान जो भी वस्तुएँ मिलीं या फिर जो भी निर्माण शैली के तत्व मिले, उन सभी से यही बात निकलकर आती है कि सिंधु सभ्यता समाज प्रधान थी। यह व्यक्तिगत न होकर सामूहिक थी। इसमें न तो किसी राजा का प्रभाव था और न ही किसी धर्म विशेष का। इतना अवश्य है कि कोई-न-कोई राजा होता होगा लेकिन राजा पर आश्रित यह सभ्यता नहीं थी। इन सभी बातों के आधार पर यह बात कही जा सकती है कि सिंधु सभ्यता का सौंदर्य समाज पोषित था।
प्रश्न 3.
पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि-“सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”
उत्तर:
सिंधु-सभ्यता से जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उनमें औजार तो हैं, पर हथियार नहीं हैं। मुअनजो-दड़ो, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु-सभ्यता में हथियार उस तरह नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रासाद मिले हैं, न मंदिर, न राजाओं व महतों की समाधियाँ। मुअनजो-दड़ो से मिला नरेश के सिर का मुकुट भी बहुत छोटा है। इन सबके बावजूद यहाँ ऐसा अनुशासन जरूर था जो नगर-योजना, वास्तु-शिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं में एकरूपता रखे हुए था। इन आधारों पर विद्वान यह मानते हैं कि यह सभ्यता समझ से अनुशासित सभ्यता थी, न कि ताकत से।
प्रश्न 4.
‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आप को कहीं नहीं ले जातीं; वे आकाश की तरफ़ अधूरी रह जाती हैं, लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उस के पार झाँक रहे हैं।’ इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
इस कथन के पीछे लेखक का आशय यही है कि खंडहर होने के बाद भी पायदान बीते इतिहास का पूरा परिचय देते हैं। इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना एक बढ़िया रोमांच है। सिंधु घाटी की सभ्यता केवल इतिहास नहीं है बल्कि इतिहास के पार की वस्तु है। इतिहास के पार की वस्तु को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देखा जा सकता है। ये अधूरे पायदान यही दर्शाते हैं. कि विश्व की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास कैसा रहा।
प्रश्न 5.
टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों को भी दस्तावेज़ होते हैं-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह सच है कि टूटे-फूटे खंडहर, सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिंदगियों के अनछुए समयों का भी दस्तावेज होते हैं। मुअनजो-दड़ो में प्राप्त खंडहर यह अहसास कराते हैं कि आज से पाँच हजार साल पहले कभी यहाँ बस्ती थी। ये खंडहर उस समय की संस्कृति का परिचय कराते हैं। लेखक कहता है कि इस आदिम शहर के किसी भी मकान की दीवार पर पीठ टिकाकर सुस्ता सकते हैं चाहे वह एक खंडहर ही क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रखकर आप सहसा सहम सकते हैं, रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गंध महसूस कर सकते हैं या शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर बैलगाड़ी की रुन-झुन सुन सकते हैं। इस तरह जीवन के प्रति सजग दृष्टि होने पर पुरातात्विक खंडहर भी जीवन की धड़कन सुना देते हैं। ये एक प्रकार के दस्तावेज होते हैं जो इतिहास के साथ-साथ उस अनछुए समय को भी हमारे सामने उपस्थित कर देते हैं।
प्रश्न 6.
इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है, जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, परंतु इससे आपके मन में उस नगर की एक तसवीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नज़दीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
मैंने हर्षवर्धन के किले को नजदीक से देखा है। यह एक ऐतिहासिक स्थल है। यह बहुत बड़ा किला है। जिसे हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी बना रखा था। अपने भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद वह थानेसर का राजा बना। इस किले के चारों ओर प्रत्येक कोने पर ऊँचे-ऊँचे स्तंभ हैं। इसके परकोटों पर खूबसूरत मीनाकारी की गई है। अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के रहने के लिए महल के साथ ही कमरे बनवाए हुए थे। किले का मुख्य गुंबद बहुत ऊँचा था। इसके साथ ही एक मीना बाज़ार था जहाँ पर हर प्रकार का साजो-सामान बिकता था। यह किला आज भी शांतभाव से खड़ा अपना इतिहास बताता प्रतीत । होता है। किले का प्रवेश द्वार बहुत मजबूत है जहाँ तक कई सीढ़िया पार करके पहुँचा जा सकता है।
प्रश्न 7.
नदी, कुएँ, स्नानागार और बेजोड़ निकासी व्यवस्था को देखते हुए लेखक पाठकों से प्रश्न पूछता है कि क्या हम सिंधु घाटी सभ्यता को जल-संस्कृति कह सकते हैं? आपका जवाब लेखक के पक्ष में है या विपक्ष में? तर्क दें।
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता में नदी, कुएँ, स्नानागार व बेजोड़ निकासी व्यवस्था के अनुसार लेखक इसे ‘जल-संस्कृति’ की संज्ञा देता है। मैं लेखक की बात से पूर्णत: सहमत हूँ। सिंधु-सभ्यता को जल-संस्कृति कहने के समर्थन में निम्नलिखित कारण हैं –
- यह सभ्यता नदी के किनारे बसी है। मुअनजो-दड़ो के निकट सिंधु नदी बहती है।
- यहाँ पीने के पानी के लिए लगभग सात सौ कुएँ मिले हैं। ये कुएँ पानी की बहुतायत सिद्ध करते हैं।
- मुअनजो-दड़ो में स्नानागार हैं। एक पंक्ति में आठ स्नानागार हैं जिनमें किसी के भी द्वार एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते। कुंड में पानी के रिसाव को रोकने के लिए चूने और चिराड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है।
- जल-निकासी के लिए नालियाँ व नाले बने हुए हैं जो पकी ईटों से बने हैं। ये ईटों से ढँके हुए हैं। आज भी शहरों में जल-निकासी के लिए ऐसी व्यवस्था की जाती है।
- मकानों में अलग-अलग स्नानागार बने हुए हैं।
- मुहरों पर उत्कीर्ण पशु शेर, हाथी या गैडा जल-प्रदेशों में ही पाए जाते हैं।
प्रश्न 8.
सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखिए साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ़ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह-चर्चा करें।
उत्तर:
यदि मोहनजोदड़ो अर्थात् सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में धारणा बिना साक्ष्यों के बनाई गई है तो यह गलत नहीं है। क्योंकि जो कुछ हमें खुदाई से मिला है वह किसी साक्ष्य से कम नहीं। खुदाई के दौरान मिले बर्तनों, सिक्कों, नगरों, सड़कों, गलियों को साक्ष्य ही कहा जा सकता। साक्ष्य लिखित हों यह जरूरी नहीं है। जो कुछ हमें सामने दिखाई दे रहा है वह भी तो प्रमाण है। फिर हम इस तथ्य को कैसे भुला दें कि ये दोनों नगर विश्व की प्राचीनतम संस्कृति और सभ्यता के प्रमाण हैं। इन्हीं के कारण अन्य सभी संस्कृतियाँ विकसित हुईं। मुअन-जोदड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। वह हर दृष्टि से प्रामाणिक है। उसके बारे में अन्य कोई धारणा मेरे मन में नहीं बनती।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर:
लेखक बताता है कि बड़ी बस्ती के घर बहुत बड़े होते थे। इसी प्रकार इन घरों के आँगन भी बहुत खुले होते थे। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी होती थीं। जिस आधार पर कहा जा सकता है कि मोटी दीवारों वाले घर दो मंजिले होते होंगे। कुछ दीवारों में छेद भी मिले हैं जो यही संकेत देते हैं कि दूसरी मंजिल को उठाने के लिए शायद शहतीरों के लिए यह जगह छोड़ दी गई होगी। सभी घर पक्की ईंटों के हैं। एक ही आकार की ईंटे इन घरों में लगाई गई हैं। यहाँ पत्थर का प्रयोग ज्यादा नहीं हुआ। कहीं-कहीं नालियों को अनगढ़ पत्थरों से ढक दिया है ताकि गंदगी न फैले। इस प्रकार मुअनजोदड़ो की बड़ी बस्ती निर्माण कला की दृष्टि से संपन्न एवं कुशल थी।
प्रश्न 2.
क्या प्राचीनकाल में रंगाई का काम होता था।
उत्तर:
प्राचीनकाल में भी रंगाई का काम होता था। लोग बड़े चाव से यह काम किया करते थे। आज भी मुअनजोदड़ो में एक रंगरेज का कारखाना मौजूद है। यहाँ ज़मीन में गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इसमें रंगाई के लिए बर्तन रखे जाते होंगे। पश्चिम में ठीक गढ़ी के पीछे यह कारखाना मिला है। अतः इस बात को बिना किसी शंका के कहा जा सकता है कि प्राचीन लोग रंगाई का काम किया करते थे।
प्रश्न 3.
खुदाई के दौरान मुअनजोदड़ो से क्या-क्या मिला?
उत्तर:
मुअनजोदड़ो से निकली वस्तुओं की पंजीकृत संख्या पचास हजार है। अहम चीजें तो आज कराची, लाहौर, दिल्ली और लंदन में रखी हुई हैं। मुठ्ठीभर चीजें यहाँ के अजायबघर में रखी हुई हैं जिनमें गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य यंत्र, चाक पर बने बड़े-बड़े मिट्टी के मटके, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप तौल के पत्थर, ताँबे का शीशा, मिट्टी की बैलगाड़ी, दो पाटों वाली चक्की, मिट्टी के कंगन, मनकों वाले पत्थर के हार प्रमुख हैं। इस प्रकार खुदाई के दौरान बहुत-सी वस्तुएँ मिलीं जिनमें कुछ तो संग्रहालयों में चली गई और बाकी बची चोरी हो गईं।
प्रश्न 4.
सिंधु घाटी की सभ्यता कैसी थी? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर:
लेखक के मतानुसार सिंधु घाटी की सभ्यता ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी। दूसरे स्थानों पर खुदाई करने से राजतंत्र को प्रदर्शित करने वाले महल धर्म की ताकत दिखाने वाले पूजा स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड मिले हैं जबकि मुअनजोदड़ो की खुदाई के दौरान न तो राजप्रसाद ही मिले और न ही मंदिर। यहाँ किसी राजा अथवा महंत की समाधि भी नहीं मिली। यहाँ जो नरेश की मूर्ति मिली है उनके मुकुट का आकार बहुत छोटा है। इतना छोटा कि इससे छोटे सिरपंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन लोगों की नावों का आकार भी ज्यादा बड़ा नहीं था। इन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी की । सभ्यता आडंबर हीन सभ्यता थी। ऐसी सभ्यता जो छोटी होते हुए भी महान थी। जो विश्व की प्राचीनतम संस्कृति थी।
प्रश्न 5.
किन आधारों पर कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता में राजतंत्र नहीं था?
उत्तर:
मुअनजोदड़ो के अजायबघर में प्रदर्शित चीज़ों में औज़ार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। मुअनजोदड़ो क्या, हड़प्पा से लेकर हरियाणा तक समूची सिंधु सभ्यता में हथियार उस तरह कहीं नहीं मिले हैं जैसे किसी राजतंत्र में होते हैं। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहे हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं। वे मानते हैं कोई सैन्य सत्ता शायद यहाँ न रही हो। मगर कोई अनुशासन ज़रूर था जो नगर योजना, वास्तुशिल्प, मुहर-ठप्पों, पानी या साफ़-सफ़ाई जैसी सामाजिक व्यवस्थाओं आदि में एकरूपता तक को कायम रखे हुए था।
दूसरी बात, जो सांस्कृतिक धरातल पर सिंधु घाटी सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं से अलग ला खड़ा करती है, वह है प्रभुत्व या दिखावे के तेवर का नदारद होना। दूसरी जगहों पर राजतंत्र या धर्मतंत्र की ताकत का प्रदर्शन करने वाले महल, उपासना-स्थल, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। हड़प्पा संस्कृति में न भव्य राजप्रसाद मिले हैं, न मंदिर। न राजाओं, महंतों की समाधियाँ। यहाँ के मूर्तिशिल्प छोटे हैं और औज़ार भी। मुअनजोदड़ो के नरेश’ के सिर पर जो ‘मुकुट’ है, शायद उससे छोटे सिरपंच की कल्पना भी नहीं की जा सकती। और तो और, उन लोगों की नावें बनावट में मिस्र की नावों जैसी होते हुए भी आकार में छोटी रहीं। आज के मुहावरे में कह सकते हैं वह ‘लो-प्रोफाइल’ सभ्यता थी।
प्रश्न 6.
मुअनजोदड़ो और हड़प्पा के बारे में लेखक क्या बताता है?
उत्तर:
मुअनजोदड़ो और हड़प्पा प्राचीन भारत के ही नहीं, दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। ये सिंधु घाटी सभ्यता के परवर्ती यानी परिपक्व दौर के शहर हैं। खुदाई में और शहर भी मिले हैं। लेकिन मुअनजोदड़ो ताम्र काल के शहरों में सबसे बड़ा है। वह सबसे उत्कृष्ट भी है। व्यापक खुदाई यहीं पर संभव हुई। बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजोसामान और खिलौने आदि मिले। सभ्यता का अध्ययन संभव हुआ। उधर सैकड़ों मील दूर हड़प्पा के ज्यादातर साक्ष्य रेललाइन बिछने के दौरान विकास की भेंट चढ़ गए।’ मुअनजोदड़ो के बारे में धारणा है कि अपने दौर में वह घाटी की सभ्यता का केंद्र रहा होगा। यानी एक तरह की राजधानी। माना जाता है यह शहर दो सौ हेक्टर क्षेत्र में फैला था। आबादी कोई पचासी हजार थी। जाहिर है, पाँच हजार साल पहले यह आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लांघता होगा।
प्रश्न 7.
लेखक के मुअनजोदड़ो की नगर योजना की तुलना आज के नगरों से किस प्रकार की है?
उत्तर:
नगर नियोजन की मोहनजोदड़ो अनूठी मिसाल है; इस कथन का मतलब आप बड़े चबूतरे से नीचे की तरफ देखते हुए सहज ही भाँप सकते हैं। इमारतें भले खंडहरों में बदल चुकी हों, मगर शहर की सड़कों और गलियों के विस्तार को स्पष्ट करने के लिए ये खंडहर काफ़ी हैं। यहाँ की कमोबेश सारी सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी। आज वास्तुकार इसे ‘ग्रिड प्लान’ कहते हैं। आज की सेक्टर-मार्का कॉलोनियों में हमें आड़ा-सीधा ‘नियोजन’ बहुत मिलता है। लेकिन वह रहन-सहन को नीरस बनाता है। शहरों में नियोजन के नाम पर भी हमें अराजकता ज़्यादा हाथ लगती है। ब्रासीलिया या चंडीगढ़ और इस्लामाबाद ‘ग्रिड’ शैली के शहर हैं जो आधुनिक नगर नियोजन के प्रतिमान ठहराए जाते हैं, लेकिन उनकी बसावट शहर के खुद विकास करने का कितना अवकाश छोड़ती है इस पर बहुत शंका प्रकट की जाती है।
प्रश्न 8.
महाकुंड के विषय में बताइए। यहाँ की जल निकासी व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर:
महाकुंड स्तूप के टीले से नीचे उतरने पर मिलता है। धरोहर के प्रबंधकों ने गली का नाम दैव मार्ग रखा है। माना जाता है कि उस सभ्यता में सामूहिक स्नान किसी अनुष्ठान का अंग होता था। कुंड करीब चालीस फुट लंबा और पच्चीस फुट चौड़ा है। गहराई सात फुट। कुंड में उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। इसके तीन तरफ साधुओं के कक्ष बने हुए हैं। उत्तर में दो पांत में आठ स्नानघर हैं। इनमें किसी का द्वार दूसरे के सामने नहीं खुलता। सिद्ध वास्तुकला का यह भी एक नमूना है। इस कुंड में खास बात पक्की ईंटों का जमाव है।
कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का ‘अशुद्ध पानी कुंड में न आए, इसके लिए कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिरोड़ी के गारे का इस्तेमाल हुआ है। पाश्र्व की दीवारों के साथ दूसरी दीवार खड़ी की गई है जिसमें सफ़ेद डामर का प्रयोग है। कुंड के पानी के बंदोबस्त के लिए एक तरफ कुआँ है। दोहरे घेरे वाला यह अकेला कुआँ है। इसे भी कुंड के पवित्र या आनुष्ठानिक होने का प्रमाण माना गया है। कुंड से पानी को बाहर बहाने के लिए नालियाँ हैं। इनकी खासियत यह है कि ये भी पक्की ईंटों से बनी हैं और ईंटों से ढकी भी हैं।
प्रश्न 9.
मुअनजोदड़ो के कृषि उत्पादों तथा उद्योग के विषय में बताइए।
उत्तर:
विद्वानों का मानना है कि यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज भी होती थी। लोग खजूर, खरबूजे और अंगूर उगाते थे। झाड़ियों से बेर जमा करते थे। कपास की खेती भी होती थी। कपास को छोड़कर बाकी सबके बीज मिले हैं और उन्हें परखा गया है। कपास के बीज तो नहीं, पर सूती कपड़ा मिला है। ये दुनिया में सूत के दो सबसे पुराने नमूनों में एक है। दूसरा सूती कपड़ा तीन हज़ार ईसा पूर्व का है जो जॉर्डन में मिला। मुअनजोदड़ो में सूत की कताई-बुनाई के साथ रंगाई भी होती थी। रंगाई का एक छोटा कारखाना खुदाई में माधोस्वरूप वत्स को मिला था। छालटी (लिनन) और ऊपन कहते हैं। यहाँ सुमेर से आयात होते थे। शायद सूत उनको निर्यात होता हो। बाद में सिंध से मध्य एशिया और यूरोप को सदियों तक हुआ। प्रसंगवश, मेसोपोटामिया के शिलालेखों में मोहनजोदड़ो के लिए ‘मेलुहा’ शब्द का संभावित प्रयोग मिलता है।
प्रश्न 10.
‘मुअनजोदड़ो’ के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु सभ्यता की विशेषताओं पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
‘मुअनजोदड़ो’ के उत्खनन से प्राप्त जानकारियों के आधार पर सिंधु सभ्यता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- सिंधु सभ्यता के नगरों की सड़कें समकोण पर काटती थीं। वे खुली व साफ़ थी।
- यहाँ सामूहिक स्नानागार मिले हैं।
- ‘यहाँ पानी की निकासी की उत्तम व्यवस्था थी, नालियाँ पक्की व ढकी हुई थी।
- यहाँ खेती व व्यापार के प्रमाण मिले हैं।
- हर नगर में अनाज भंडार घर की व्यवस्था थी।
- मुहरों पर उत्कीर्ण कलाकृतियाँ, आभूषण, सुघड़ अक्षरों की लिपि आदि से कलात्मक उत्कृष्टता का पता चलता है।
- हर नगर में अनाज भंडार घर की व्यवस्था थी।
- नगर सुनियोजित थे।
प्रश्न 11.
पर्यटक मुअनजोदड़ो में क्या-क्या देख सकते हैं? ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पर्यटक मुअनजोदड़ो में निम्नलिखित चीजें देख सकते हैं
- बौद्ध स्तूप – मुअनजोदड़ो में सबसे ऊँचे चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तूप है। यह स्तूप मुअनजोदड़ो के बिखरने के बाद बना था। 25 फुट ऊँचे चबूतरे पर बना है। इसमें भिक्षुओं के रहने के कमरे भी बने हैं।
- स्नानागार – यहाँ पर 40 फुट लंबा तथा 25 फुट चौड़ा कुंड बना हुआ है। यह सात फुट गहरा है। कुंड के उत्तर और दक्षिण से सीढ़ियाँ उतरती हैं। उत्तर में आठ स्नानागार एक पंक्ति में हैं। इसमें एक तरफ तीन कक्ष हैं।
- अजायबघर – यहाँ का अजायबघर छोटा ही है। यहाँ काला पड़ गया गेहूँ, ताँबे और काँसे के बर्तन, मुहरें, वाद्य, चाक पर बने विशाल मृद्भांड, दीये, ताँबे का आईना, दो पाटन वाली चक्की आदि रखे हैं।
प्रश्न 12.
‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए। (सैंपल पेपर-2012)
उत्तर:
इस पाठ में लेखक ने मुअनजोदड़ो की यात्रा के समय के अपने अनुभवों के विषय में बताया है। लेखक यहाँ पर पहुँचकर पुराने सुनियोजित शहर की एक-एक चीज का सिलसिलेवार परिचय करवाता है। वह उस सभ्यता के अतीत में झाँककर वहाँ के निवासियों और क्रियाकलापों को अनुभव करता है। यहाँ की सड़कें, नालियाँ, स्तूप, स्नानागार, सभागार, अन्न भंडार, कुएँ, आदि के अलावा मकानों की सुव्यवस्था को देखकर लेखक महसूस करता है कि लोग अब भी वहाँ मौजूद हैं। उसे बैलगाड़ियों की ध्वनि सुनाई देती हैं। रसोई घर की खिड़की से झाँकने पर वहाँ पक रहे भोजन की गंध आती है। लेखक कल्पना करता है कि यदि यह सभ्यता नष्ट न हुई होती तो आज भारत महाशक्ति बन चुका होता। यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है।