Chapter 12 बाजार दर्शन

 


पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

पाठ के साथ

प्रश्न 1.
बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?  
उत्तर:

बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  1. बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
  2. उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
  3. वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
  4. वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
  5. खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
  6. उसे खरीदी हुई वस्तुएँ अनावश्यक लगती हैं।

प्रश्न 2.
बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनको आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है? 
उत्तर:

भगत जी समर्पण भी भावना से ओतप्रोत हैं। धन संचय में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। वे संतोषी स्वभाव के आदमी हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार साबित होते हैं।

प्रश्न 3.
‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें हैं?  
उत्तर:

‘बाजारूपन’ से तात्पर्य है-दिखावे के लिए बाजार का उपयोग। बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। क्रय-शक्ति से संपन्न की पुलेि व्यिक्त बाल्पिनक बताते हैं। इसप्रतिसे बारक सवा लधनाह मिलता। शणक प्रति बढ़ जाती है। वे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकता के बारे में निश्चित होते हैं, बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। बाजार का कार्य मनुष्य कल कपू करता है जहातक सामान मल्नेप बार सार्थकह जाता है। यह पॉड” पावरक प्रर्शना नहीं होता।

प्रश्न 4.
बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इसे रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?  
उत्तर:

यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है। प्रश्न 5. आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें
(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।
(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।
उत्तर:
(क) एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।

(ख) एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1.
‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

  1. मन खाली हो
  2. मन खाली न हो
  3. मन बंद हो
  4. मन में नकार हो

उत्तर:

  1. मनखालौ होजब मनुष्य का मन खाली होता है तो बाजार में अनापशनाप खरीददारी की जाती है । बजर का जादू सिर चढकर बोलता है । एक बार में मेले में घूमने गया । वहाँ चमकदमकआकर्षक वस्तुएँ मुझे न्योता देती प्रतीत हो रहीं थीं । रंगबिरंगी लाइटों से प्रभावित होकर मैं एक महँगी ड्रेस खरीद लाया । लाने के खाद पता चला कि यह आधी कीमत में फुटपाथ पर मिलती है । 
  2. मन खाली न होमन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं अन्य चीजों को देखता जरूर हूँपर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है । 
  3. मनबंदहोमन ईद होने पर इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं । वैसे तो इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतींपरंतु कभीकभी पन:स्थिति ऐसी होती है कि किसी वस्तु में मन नहीं
    लगता । एक दिन में उदास था और मुझे बाजार में किसी 
    वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । अतमें विना कहीं रुके बाजार से निकल आया ।
  4. मन में नकार होमन में नकारात्मक भाव होने से बाजार की हर वस्तु खराब दिखाई देने लगती है । इससे समाज इसका विकास रुक जाता है । ऐसा असर किसी के उपदेश या सिदूधति का पालन करने से होता है । एक दिन एक साम्यवादी ने इस तरह का पाठ पढाया कि बडी कंपनियों की वस्तुएँ मुझें शोषण का रूप दिखाई देने लगी।

प्रश्न 2.
‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?
उत्तर:

इस पाठ में प्रमुख रूप से दो प्रकार के ग्राहकों का चित्रण निबंधकार ने किया है। एक तो वे ग्राहक, जो ज़रूरत के अनुसार चीजें खरीदते हैं। दूसरे वे ग्राहक जो केवल धन प्रदर्शन करने के लिए चीजें खरीदते हैं। ऐसे लोग बाज़ारवादी संस्कृति को ज्यादा बढ़ाते हैं। मैं स्वयं को पहले प्रकार का ग्राहक मानता/मानती हैं क्योंकि इसी में बाजार की सार्थकता है।

प्रश्न 3.
आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है?
उत्तर:

मॉल को संस्कृति से बाजार को पर्चेजिग पावर को बढावा मिलता है । यह संस्कृति उच्च तथा उच्च मध्य वर्ग से संबंधित है । यहाँ एक ही छत के नीचे विभिन्न तरह के सामान मिलते हैं तथा चकाचौंध व लूट चरम सोया पर होती है । यहाँ बाजारूपन भी फूं उफान पर होता है । सामान्य बाजार में मनुष्य की जरूरत का सामान अधिक होता है । यहाँ शोषण कम होता है तथा आकर्षण भी कम होता है । यहाँ प्राहक व दूकानदार में सदभाव होता है । यहाँ का प्राहक मध्य वर्ग का होता है।

हाट – संस्कृति में निम्न वर्ग व ग्रमीण परिवेश का गाहक होता है । इसमें दिखाया नहीं होता तथा मोल-भाव भी नाम- हैं का होता है । ।पचेंजिग पावर’ मलि संस्कृति में नज़र आती है क्योंकि यहाँ अनावश्यक सामान अधिक खरीदे जाते है।

प्रश्न 4.
लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।  
उत्तर:

आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 5.
स्त्री माया न जोड़े यहाँ मया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?
उत्तर:

यहाँ माया‘ शब्द का अर्थ हैधनमगातीजरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –

  1. आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
  2. घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
  3. अनिश्चित भविष्य ।
  4. अहंभाव की तुष्टि ।
  5. बच्चों की शिक्षा ।
  6. संतानविवाह हेतु ।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘बाज़ारे दर्शन’ निबंध की भाषा के बारे में बताइए।
उत्तर:

बाजार दर्शन जैनेंद्र द्वारा लिखा गया एक सार्थक निबंध है। इसमें निबंधकार ने सहज, सरल और प्रभावी भाषा का प्रयोग किया है। शब्दावली में कुछेक अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं। लेकिन ये शब्द कठिन नहीं हैं। पाठक सहजता से इन्हें ग्रहण कर लेता है। भाषा की दृष्टि से यह एक सफल और प्रभावशाली निबंध है। वाक्य छोटे-छोटे हैं जो निबंध को अधिक संप्रेषणीय बनाते हैं।

प्रश्न 2.
‘बाज़ार दर्शन’ निबंध किस प्रकार का है?
उत्तर:

निबंध प्रकार की दृष्टि से बाजार दर्शन को वर्णनात्मक निबंध कहा जा सकता है। निबंधकार ने हर स्थिति, घटाने का वर्णन किया है। प्रत्येक बात को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मकता के कारण निबंध में रोचकता और स्पष्टता दोनों आ गए हैं। वर्णनात्मक निबंध प्रायः उलझन पैदा करते हैं लेकिन इस निबंध में यह कमी नहीं है।

प्रश्न 3.
इस निबंध में अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

निबंधकार ने हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, उर्दू, फारस भाषा के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन शब्दों के प्रयोग से निबंध की रोचकता और सार्थकता बढ़ी है। अंग्रेज़ी के शब्द-एनर्जी, बैंक, पर्चेजिंग पावर, मनी बैग, रेल टिकट, फैंसी स्टोर, शॉपिंग मॉल, ऑर्डर आदि। उर्दू फारसी के शब्द-नाहक, पेशगी, कमज़ोर, बेहया, हरज, बाज़ार, खलल, कायल, दरकार, माल-असबाब।

प्रश्न 4.
निबंध में किस प्रकार की शैली का प्रयोग किया गया है।
उत्तर:

प्रस्तुत निबंध में जैनेंद्र जी ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, उदाहरण आदि शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों के प्रयोग से निबंध की भाव संप्रेषणीयता बढ़ी है। साथ ही स्पष्टता और सरलता के गुण भी आ गए हैं। निबंधकार ने इन शैलियों का प्रयोग स्वाभाविक ढंग से किया है। इस कारण निबंध की रोचकता में वृद्धि हुई है। इनके कारण पाठक एक बैठक में निबंध को पढ़ लेना चाहता है।

प्रश्न 5.
बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:

बाजार दर्शन से लेखक का अभिप्राय है बाज़ार के दर्शन करवाना अर्थात् बाज़ार के बारे में बताना कि कौन-कौन सी चीजें मिलती हैं कि वस्तुओं की बिक्री ज्यादा होती है। यह बाज़ार किस तरह आकर्षित करता है। लोग क्यों बाज़ार से ही आकर्षित होते हैं।

प्रश्न 6.
उपभोक्तावादी संस्कृति क्या है?
उत्तर:

उपभोक्तावादी संस्कृति वास्तव में उपभोक्ताओं का समूह है। उपभोक्ता बाज़ार से सामान खरीदते हैं। यह वर्ग ही बाजार पैदा करता है। लोग अपने उपभोग की सारी वस्तुएँ बाज़ार से खरीदकर उनका उपभोग करते हैं। बाज़ार का सारा कारोबार इन्हीं पर निर्भर होता है।

प्रश्न 7.
कौन-से लोग फिजूल खर्ची नहीं करते?
उत्तर:

लेखक कहता है कि संयमी लोग फिजूल खर्ची नहीं करते। वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। बाजार के आकर्षण में ये कभी नहीं हँसते। उन्हें अपनी ज़रूरत से मतलब है न कि बाजारूपन से। जो चाहिए वही खरीदा नहीं तो छोड़ दिया।

प्रश्न 8.
भगत जी के बारे में बताइए।
उत्तर:

लेखक ने भगत जी पात्र का वर्णन इस निबंध में किया है। उसके माध्यम से लेखक ने संतोष का पाठ पढ़ाया है। भगत जी केवल उतना ही सामान बेचते हैं जितना की बेचकर खर्चा चलाया जा सके। जब खर्चे लायक पैसे आ गए तो सामान बेचना बंद कर दिया। कभी किसी गरीब बच्चे को मुफ्त चूरन दे दिया। लेकिन ज्यादा सामान बेचने का लालच नहीं था।

प्रश्न 9.
किस तरह का बाज़ार आदमी को ज्यादा आकर्षित करता है?
उत्तर:

लेखक के अनुसार ‘शॉपिंग मॉल’ व्यक्ति को ज्यादा आकर्षित करता है। उनकी सजावट देखकर व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित हो जाता है। वह उनके आकर्षण के जाल में फँस जाता है। इसी कारण वह उन चीजों को भी खरीद लेता है जिसकी उसे कोई जरूरत नहीं होती। वास्तव में, शॉपिंग मॉल ऊँचे रेटों पर सामान बेचते हैं।

प्रश्न 10.
बाज़ार का जादू क्या है? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए। 
उत्तर:

बाजार की चमक-दमक व उसके आकर्षण में फँसकर व्यक्ति खरीददारी करता है तो यही बाजार का जादू है। बाजार का जादू मनुष्य पर तभी चलता है जब उसके पास धन होता है तथा वस्तुएँ खरीदने की निर्णय क्षमता नहीं होती। वह आराम वे अपनी शक्ति दिखाने के लिए निरर्थक चीजें खरीदता है। जब पैसे खत्म हो जाते हैं तब उसे पता चलता है कि आराम के नाम पर जो गैर जरूरी वस्तुएँ उसने खरीदी हैं, वे अशांति उत्पन्न करने वाली है। वह झल्लाता है, परंतु उसका अभिमान उसे तुष्ट करता है।

प्रश्न 11.
भगत जी बाज़ार को सार्थक व समाज को शांत कैसे कर रहे हैं?
अथवा
‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

लेखक ने इस निबंध में भगत जी का उदाहरण दिया है जो बाज़ार से काला नमक व जीरा लाकर वापस लौटते हैं। इन पर बाज़ार का आकर्षण काम नहीं करता क्योंकि इन्हें अपनी ज़रूरत का ज्ञान है। इससे पता चलता है कि मन पर नियंत्रण वाले व्यक्ति पर बाजार का कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बाजार को सही सार्थकता प्रदान करते हैं। दूसरे, उनका यह रुख समाज में शांति पैदा करता है क्योंकि यह पैसे की पावर नहीं दिखाता। यह प्रतिस्पर्धा नहीं उत्पन्न करता।

प्रश्न 12.
खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं?  
उत्तर:

खाली मन तथा जेब भरी होने से लेखक का आशय है कि मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की निर्णय शक्ति का न होना तथा मनुष्य के पास धन होना। ऐसे व्यक्तियों पर बाज़ार अपने चमकदमक से कब्जा कर लेता है। वे गैर ज़रूरी चीजें खरीदते हैं।

प्रश्न 13.
‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ कथन को स्पष्ट कीजिए।  
उत्तर:

लेखक बताता है कि पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। यदि कोई समर्थ व्यक्ति दूसरे के सामने किसी महंगी वस्तु को खरीदे तो दूसरा व्यक्ति स्वयं को हीन महसूस करता है। पैदल या दोपहिया वाहन चालक के पास से धूल उड़ाती कार चली जाए तो वह परेशान हो उठता है। वह स्वयं को कोसता रहता है। वह भी कार खरीदने के पीछे लग जाता है। इसी कारण बाज़ार में माँग बढ़ती है।

प्रश्न 14.
‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:

पैसे की पावर का रस फिजूल की वस्तुएँ खरीदने, माल असबाब, मकान-कोठी आदि के द्वारा लिया जाता है। यदि पैसा खर्च न भी किया जाए तो अधिक धन पास रहने से भी गर्व का अनुभव किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
‘बाज़ार दर्शन’ निबंध उपभोक्तावाद एवं बाज़ारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है।’-उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।  
उत्तर:

यह निबंध उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। लेखक बताता है कि बाजार का आकर्षण मानव मन को भटका देता है। वह उसे ऐशोआराम की वस्तुएँ खरीदने की तरह आकर्षित करता है। लेखक ने भगत जी के माध्यम से नियंत्रित खरीददारी का महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। बाजार मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करें। इसी में उसकी सार्थकता है, अन्यथा यह समाज में ईर्ष्या, तृष्णा, असंतोष, लूटखसोट को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 16.
बाज़ार जाते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।  
उत्तर:

बाज़ार जाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. हमें ज़रूरत के सामान की सूची बनानी चाहिए।
  2. हमें बाजार के आकर्षण से बचना चाहिए।
  3. हमारा मन निश्चित खरीददारी के लिए होना चाहिए।
  4. बाज़ार में क्रयक्षमता का प्रदर्शन ने करके जरूरत का सामान लेना चाहिए।
  5. बाजार में असंतोष व हीन भावना से दूर रहना चाहिए।